नई दिल्ली, 2 अगस्त (आईएएनएस)। संसद की एक समिति ने भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) द्वारा की जा रही नई भर्तियों पर गुणवत्ता में कमी को लेकर चिंता जाहिर की है और कहा है कि यह ‘अत्यावश्यक’ है कि सिर्फ सर्वश्रेष्ठ लोग ही चयनित हों।
कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता वाली विदेश मामलों की स्थायी समिति ने मंगलवार को संसद में पेश अपनी रपट में कहा है, “समिति आईएफएस द्वारा चयनित नए अधिकारियों की गुणवत्ता में आई गिरावट से चितित है। यह ऐसे समय में हुआ है, जब लोक सेवा परीक्षाओं के प्रति चाहत और अपील में तेजी से इजाफा हुआ है।”
समिति ने कहा कि पहले लोक सेवा परिक्षाओं में सर्वश्रेष्ठ अंक हासिल करने वाले अभ्यर्थियों का ही आईएफएस के लिए चयन किया जाता था, जबकि ‘हालिया मामले चौंकाने वाले हैं’ कि कम अंक पाने वाले अभ्यर्थियों के लिए भी आईएफएस के दरवाजे खोल दिए गए हैं।
इस स्थायी समिति में तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुगता बोस, कांग्रेस सांसद कर्ण सिंह और राहुल गांधी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सांसद मोहम्मद सलीम, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सांसद सुप्रिया सुले और नामांकित सदस्य स्वप्न दासगुप्ता शामिल हैं।
समिति ने कहा, “यही कारण है कि आईएफएस की प्रतिष्ठा में गिरावट आई है, जो उसके कारणों की ओर भी संकेत करता है।”
समिति के अनुसार, हाल के वर्षो में जहां अधिक विदेश दौरों के अवसरों के कारण आईएफएस के प्रति रुझान बढ़ा है, लेकिन विदेश मंत्रालय ने माना है कि यह जरूरी नहीं है कि लोक सेवा परिक्षाओं में पास होने वाले शीर्ष 10 लोगों को ही आईएफएस में लिया जाए।
31 सदस्यीय संसदीय समिति के अनुसार, 2014 और 2015 में आईएफएस में टॉप करने वाले अभ्यर्थी की लोक सेवा परीक्षा की वरीयता सूची में रैंकिंग क्रमश: 14वीं और 24वीं रही।