महर्षि अरविंद को भारत के पिछली सदी के सबसे महान दार्शनिक-चिंतकों में से एक माना जाता है। महर्षि अरविंद यानी अरविंद घोष ने 1928 में पुडुचेरी (तत्कालीन पांडिचेरी) में इस आश्रम की स्थापना की थी। वैसे तो महर्षि अरविंद अंग्रेजों के उत्पीड़न से बचने के लिए पांडिचेरी आए थे, लेकिन यहां आने के बाद उन्हें अध्यात्म की शक्ति का आभास हुआ और वह योग की तरफ मुड़ गए। उनका दर्शन योग व आधुनिक विज्ञान का मेल था। योग में निबद्ध उनके दर्शन और उनकी लेखनी ने देश-विदेश में बहुत लोगों को प्रभावित किया। पारसी चित्रकार व संगीतकार मीरा अलफस्सा भी उनमें से थीं। इस आश्रम की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी और वे ही बाद में ‘मां’ कहलाईं। 1950 में महर्षि अरविंद की मृत्यु के बाद आश्रम के संचालन की जिम्मेदारी उन्हीं पर रही। 1973 में 93 साल की उम्र में मृत्यु होने तक वे यह जिम्मेदारी संभालती रहीं। ‘ऑरोविले’ यानी उदय का शहर भी उन्हीं की परिकल्पना रहा। समूचे पुडुचेरी पर आश्रम का प्रभाव साफ नजर आता है। मुख्य आश्रम में ही महर्षि अरविंद और मां की समाधियां बनी हुई हैं। पंद्रह अगस्त के दिन महर्षि अरविंद की जयंती है।
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